पीपीपी मॉडल क्या होता है | ppp model kya hota hai

पीपीपी मॉडल क्या होता है, आज के दौर में, बुनियादी ढांचे के विकास की गति को तेज करने और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सरकारें लगातार नए-नए तरीकों की तलाश कर रही हैं। इन तरीकों में से एक महत्वपूर्ण तरीका है पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (Public-Private Partnership - PPP), जिसे हिंदी में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल कहा जाता है। 

पीपीपी मॉडल मॉडल सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की क्षमताओं और संसाधनों को मिलाकर विकास परियोजनाओं को पूरा करने का एक प्रभावी साधन बन गया है। इस लेख में, हम पीपीपी मॉडल की गहरी समझ प्राप्त करेंगे, जिसमें इसकी परिभाषा, प्रकार, लाभ, चुनौतियाँ और भारत में इसकी प्रासंगिकता शामिल हैं।


पीपीपी मॉडल की परिभाषा

पीपीपी मॉडल सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच एक सहयोगात्मक समझौता है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, सेवाओं या सुविधाओं का निर्माण, वित्तपोषण, संचालन और रखरखाव करना होता है।

ppp model kya hota hai
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इस मॉडल में, निजी क्षेत्र अपनी विशेषज्ञता, पूंजी और नवाचार का उपयोग सार्वजनिक क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए करता है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र परियोजना के नियामक और पर्यवेक्षी पहलुओं को संभालता है। संक्षेप में, पीपीपी मॉडल सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के सर्वोत्तम पहलुओं को जोड़ता है, जिससे विकास परियोजनाओं को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके।


पीपीपी मॉडल फुल फॉर्म

पीपीपी मॉडल का फुल फॉर्म है Public-Private Partnership, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (Public-Private Partnership - PPP), जिसे हिंदी में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल कहा जाता है।  यह एक सहयोगात्मक ढांचा है जिसमें सार्वजनिक (सरकारी) और निजी (प्राइवेट) क्षेत्र मिलकर किसी परियोजना या सेवा के विकास, वित्तपोषण, और संचालन में भाग लेते हैं।


पीपीपी मॉडल की आवश्यकता क्यों?

पीपीपी मॉडल की आवश्यकता कई कारणों से उत्पन्न होती है:

  • बुनियादी ढांचे की कमी: कई विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की भारी कमी है, जिसके कारण आर्थिक विकास बाधित होता है। पीपीपी मॉडल निजी क्षेत्र की पूंजी और विशेषज्ञता को आकर्षित करके इस कमी को दूर करने में मदद करता है।

  • सरकारी बजट पर दबाव: सरकारें अक्सर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पर्याप्त धन आवंटित करने में असमर्थ होती हैं, जिसके कारण परियोजनाएं लंबित रहती हैं या धीमी गति से चलती हैं। पीपीपी मॉडल निजी क्षेत्र को वित्तपोषण में योगदान करने की अनुमति देकर सरकारी बजट पर दबाव कम करता है।

  • दक्षता और नवाचार: निजी क्षेत्र आमतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में अधिक कुशल और नवाचारी होता है। पीपीपी मॉडल निजी क्षेत्र को अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करने और परियोजना को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

  • जोखिम का बंटवारा: पीपीपी मॉडल में, जोखिम सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच साझा किए जाते हैं। इससे परियोजना की सफलता की संभावना बढ़ जाती है और सार्वजनिक क्षेत्र पर वित्तीय बोझ कम हो जाता है।


पीपीपी मॉडल के प्रकार

पीपीपी मॉडल विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएं और संरचना होती है। कुछ सामान्य प्रकार के पीपीपी मॉडल निम्नलिखित हैं:

  • निर्माण-परिचालन-हस्तांतरण (Build-Operate-Transfer - BOT): इस मॉडल में, निजी क्षेत्र बुनियादी ढांचे का निर्माण करता है, उसे एक निर्दिष्ट अवधि के लिए संचालित करता है, और फिर स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र को हस्तांतरित कर देता है। इस अवधि के दौरान, निजी क्षेत्र उपयोग शुल्क या अन्य राजस्व धाराओं के माध्यम से अपने निवेश की वसूली करता है।

  • निर्माण-स्वामित्व-परिचालन-हस्तांतरण (Build-Own-Operate-Transfer - BOOT): यह मॉडल BOT मॉडल के समान है, सिवाय इसके कि निजी क्षेत्र निर्माण अवधि के दौरान परियोजना का स्वामित्व रखता है।

  • डिजाइन-निर्माण-वित्त-परिचालन (Design-Build-Finance-Operate - DBFO): इस मॉडल में, निजी क्षेत्र परियोजना को डिजाइन, निर्माण, वित्त और संचालित करने के लिए जिम्मेदार होता है। सार्वजनिक क्षेत्र एक निर्दिष्ट अवधि के लिए निजी क्षेत्र को भुगतान करता है, जिसके बाद परियोजना का स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाता है।

  • पट्टा-परिचालन (Lease-Operate - LO): इस मॉडल में, सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को एक मौजूदा बुनियादी ढांचे को पट्टे पर देता है, जो इसे एक निर्दिष्ट अवधि के लिए संचालित करता है। निजी क्षेत्र पट्टे की अवधि के दौरान उपयोग शुल्क या अन्य राजस्व धाराओं के माध्यम से अपने निवेश की वसूली करता है।

  • प्रबंधन अनुबंध (Management Contract): इस मॉडल में, सार्वजनिक क्षेत्र निजी क्षेत्र को एक बुनियादी ढांचे के प्रबंधन और संचालन का अनुबंध देता है। निजी क्षेत्र एक निर्धारित शुल्क के लिए सेवाएं प्रदान करता है।


पीपीपी मॉडल के फायदे

पीपीपी मॉडल के फायदे पीपीपी मॉडल सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के लिए कई लाभ प्रदान करता है:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए:

    • बुनियादी ढांचे का तीव्र विकास
    • सरकारी बजट पर कम दबाव
    • दक्षता और नवाचार में वृद्धि
    • जोखिम का बंटवारा
    • सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार
  • निजी क्षेत्र के लिए:

    • निवेश के नए अवसर
    • लाभप्रदता में वृद्धि
    • ज्ञान और अनुभव का विकास
    • बाजार पहुंच में वृद्धि
    • प्रतिष्ठा में वृद्धि

पीपीपी मॉडल की चुनौतियाँ

पीपीपी मॉडल में कई चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है:

  • जटिलता: पीपीपी परियोजनाएं जटिल होती हैं और उन्हें सावधानीपूर्वक योजना और निष्पादन की आवश्यकता होती है।

  • उच्च लेनदेन लागत: पीपीपी परियोजनाओं से जुड़ी लेनदेन लागत अधिक हो सकती है।

  • नियामक और कानूनी बाधाएं: पीपीपी परियोजनाओं के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी नियामक और कानूनी ढांचा आवश्यक है।

  • जोखिम का आवंटन: पीपीपी परियोजनाओं में जोखिम का उचित आवंटन महत्वपूर्ण है।

  • सार्वजनिक विरोध: पीपीपी परियोजनाओं को कभी-कभी सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ता है, खासकर यदि वे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं या सार्वजनिक सेवाओं की पहुंच को कम करते हैं।

भारत में पीपीपी मॉडल के निष्पादन या कार्यान्वयन पर चर्चा करें

भारत में पीपीपी मॉडल-

भारत में पीपीपी मॉडल बुनियादी ढांचे के विकास का एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। सरकार ने राजमार्गों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, रेलवे और शहरी बुनियादी ढांचे जैसी विभिन्न क्षेत्रों में पीपीपी परियोजनाओं को बढ़ावा दिया है।

भारत में पीपीपी मॉडल के कुछ सफल उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • दिल्ली एयरपोर्ट: दिल्ली एयरपोर्ट एक सफल पीपीपी परियोजना है जिसने भारत में हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे को बदलने में मदद की है।

  • मुंबई मेट्रो: मुंबई मेट्रो एक और सफल पीपीपी परियोजना है जिसने शहर में परिवहन व्यवस्था में सुधार किया है।

  • राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP): NHDP भारत में राजमार्गों के विकास के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसमें कई पीपीपी परियोजनाएं शामिल हैं।


पीपीपी मॉडल का उदाहरण

पीपीपी (PPP) मॉडल, जिसका अर्थ है "पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप", एक ऐसा ढांचा है जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र मिलकर सेवाओं या परियोजनाओं का संचालन करते हैं। यह मॉडल अक्सर बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं, जैसे सड़कें, पुल, अस्पताल, और स्कूल बनाने में उपयोग किया जाता है।

उदाहरण

  1. सड़क निर्माण:

    • परियोजना: एक नई एक्सप्रेसवे का निर्माण।
    • सार्वजनिक क्षेत्र: सरकार परियोजना की आवश्यकता और नियामक मंजूरी प्रदान करती है।
    • निजी क्षेत्र: निर्माण, प्रबंधन और रखरखाव के लिए एक निर्माण कंपनी को अनुबंधित किया जाता है।
  2. स्वास्थ्य सेवाएँ:

    • परियोजना: एक नए अस्पताल का संचालन।
    • सार्वजनिक क्षेत्र: स्थानीय प्रशासन भूमि और आवश्यक अनुमतियाँ देता है।
    • निजी क्षेत्र: अस्पताल का निर्माण और संचालन एक निजी अस्पताल प्रशासन द्वारा किया जाता है, जो सरकार को हिस्सेदारी और सेवाओं में भागीदारी का एक प्रतिशत देता है।
  3. शिक्षा:

    • परियोजना: एक नया स्कूल खोलना।
    • सार्वजनिक क्षेत्र: शिक्षा विभाग के तहत स्कूल को शुरू करने के लिए फंडिंग उपलब्ध कराई जाती है।
    • निजी क्षेत्र: स्कूल का संचालन और प्रबंधन निजी कंपनी या ट्रस्ट द्वारा किया जाता है, जो योग्यताओं और प्रोग्राम्स में योगदान करते हैं।

निष्कर्ष:

पीपीपी मॉडल सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच एक प्रभावी सहयोग है जो बुनियादी ढांचे के विकास और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है। हालांकि, पीपीपी परियोजनाओं को सफल बनाने के लिए सावधानीपूर्वक योजना, निष्पादन और जोखिम प्रबंधन की आवश्यकता होती है। भारत में, पीपीपी मॉडल का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए किया जा रहा है। 

सरकार को पीपीपी परियोजनाओं के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी नियामक और कानूनी ढांचा प्रदान करने, जोखिमों को उचित रूप से आवंटित करने और सार्वजनिक विरोध को संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि पीपीपी मॉडल की क्षमता को पूरी तरह से साकार किया जा सके। अंततः, पीपीपी मॉडल भारत के विकास पथ को आकार देने और देश के नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।